आज जो मजलिस का तरीका है जानिये उसका इतिहास |


हुसैन इब्ने अबितालिब (अ.स) के चाहने वाले  आज पूरी दुनिया में जब भी उनपे हुए ज़ुल्म को याद करना चाहते हैं तो फर्श ऐ अजा बिछा के मजालिस किया करते हैं | इस मजालिस का तरीका यह हुआ करता है की इसमें एक जाकिर  बुलाया जाता है जो या तो धर्म गुरु (मौलाना ) होते हैं या वो जिनको इस्लामिक इतिहास और दीन  की जानकारी हुआ करती है और वो मिम्बर पे बैठ के अह्लेबय्त पे हुए ज़ुल्म को बयान किया करते हैं |

 Shams-ul-Ulema Maulana Syed Sibte Hasan Naqvi
Shams-ul-Ulema Maulana Syed Sibte Hasan Naqvi
इस बयान में सबसे पहले जाकिर एक खुतबा अरबी में पढता है जिसका सारांश यह होता है की शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम पे और सरीतारीफ़ उस खुदा के लिए है दुरूद और सलाम मुहम्मद व आले मुहम्मद के लिए और उसके साथ कुरान की कोई आयात या हदीस पढता है जिस से जोड़ के वो अपनी खिताबत पूरा करता है |

इस खिताबत में बाद खुतबे के अह्लेबय्त की अह्मियात उन्ही फजीलातें , दीनयात इत्यादि बयान होते हैं जिसे "फजायेल " कहा जाता है और फिर उसके बाद अल्लाह की राह में क़ुरबानी देने वालों पे हुए ज़ुल्म को बयान किया जाता है जिसे "मसाएब " कहते हैं | यह बयान उर्दूभाषा में और अरबी में कुरान और हदीस के सहारे दिया जाता है | 

मसाएब के बाद सभी मोमिनीन नौहा और मातम किया करते हैं या जुलूस निकलते हैं और अंत में यह मानते हुए की इस मजालिस में इमाम (अ.स) आये हुए हैं जियारत पढी जाती है |

मजालिस का यह अंदाज़ आजे से तकीबन १०० साल पहले नहीं था बल्कि उस समाज सोअज़ ख्वानी , मर्सिया इत्यादी अरबी , फारसी या मेरे अनीस के उर्दू और फारसी में लिखे मर्सिये हुआ करते थे | भारत वर्ष में भी मीर अनीस और मेरे दबीर का मजालिसों में बोलबाला था और मजालिसें कम लेकिन बड़े पैमाने पे हुआ करती थीं और उसके लिए बड़े बड़े  इमामबाड़ों का इस्तेमाल हुआ करता था |

आज मजालिसों की तादात में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है और आज ये घर घर हुआ करती हैं और इमामबाड़ों का इस्तेमाल बड़ी बड़ी मजालिसों के लिए आज भी किया जाता है |

यह बहुत कम लोग जानते हैं की आज यह जो मालिसों का अंदाज़ है जिसमे "खुतबा , फ़ज़ायल और मसाएब " हुआ करते हैं इसे मजलिसों के अंदाज़ में शामिल करने वाले मरहूम मौलाना सय्यद सिपते हसन नकवी हैं जो जायस के रहने वाले थे |

मरहूम मौलाना सय्यद सिपते हसन नकवी एक बेहतरीन जाकिर थे और उन्हें "खतीब ऐ आज़म"  का खिताब दिया गया था | मरहूम नकवी सय्यद थे और जाएस  नसीराबाद के रहने वाले थे जिनके पूर्वज सय्यद दीदार अली नसीराबदी (गुफरान माब ) थे | आप  आदिल अख्तार, जाफ़र हुसैन, मुहम्मद दावूद ,किफ़ायत हुसैन, फरमान अली , मुहम्मद हारुन और मरहूम मशहूर जाकिर ऐ अह्लेबय्त मौलाना इब्ने हसन नुनाह्र्वी के उस्ताद भी थे | आप के पुत्र मशहूर मौलाना सय्यद मुहम्मद वारिस हसन नकवी हुए जो मदरसतुल वाइज़ीन प्राध्यापक रहे | |

मरहूम इमामबाड़ा (गुफरान माब में दफन हुए |






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