अगर दुनिया और आखिरत में कामियाबी चाहते हो तो अल्लाह के बताए हुए विलायत के सिस्टम को अपनी सोसाइटी में नाफ़िज़ करो. यह वही सिस्टम है जिसमे किसी इंसान का बनाया हुआ कांस्तितुशन / निजाम नहीं चलता बल्कि अल्लाह के बताए हुए कानून के हिसाब से सोसाइटी के लिए उसूल बनते है.| हकीक़त की तरफ नज़र की जाए तो विलायत एक इलाही मनसब है जो अल्लाह की तरफ से अपने चुनिन्दा और मखसूस बन्दों को दिया जाता है, जिसकी बिना पर पैग़म्बर और आइम्मा (अ) अल्लाह के हुक्म और शरीअत को मुआशरे में नाफ़िज़ करते है|
यही ऐलान ऐ ग़दीर का मक़सद था और मौला अली ने इसी सिस्टम के तहत लोगों को चलने की हिदायत दी जिसकी सबसे बेहतरीन मिसाल है उनका मालिक ऐ अश्तर को लिखा खत उस वक़्त जब उन्हें इजिप्ट का गवर्नर बना के भेजा |
इस पूरे खत का ज़िक्र तो अभी नहीं करूँगा लेकिन एक क़ौल काफी है की मौला अली ने कहा ऐ मालिक ऐ अश्तर तुम जहां के गवर्नर हो वहाँ जो भी लोग है उनके साथ सख्ती से पेश ना आना क्यों की वे या तो तुम्हारे धर्म भाई हैं या इंसानी रिश्ते से भाई हैं |
जब भी किसी इमाम को मौक़ा मिला उन्होंने इसी निज़ाम ऐ विलायत के ज़रिये समाज को दिशा निर्देश दिए और चलाने की कोशिश की | इस निज़ाम को चलाने के लिए समाज में राएज करने के लिए ज़्यादातर मामलों में किसी देश के क़ानून आड़े नहीं आते |
आज दौर हैं हमारे वक़्त ऐ इमाम की ग़ैबत का ऐसे में इस निज़ाम को समझाने की ज़िम्मेदारी हमारे मुजतहिद की है जिसे वे बखूबो अंजाम दे रहे हैं और अगर कहीं वे सत्ता में हैं तब तो उसी निज़ाम ऐ विलायत के तरीके से उन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों को अंजाम देते रहना है जैसा की ईरान में अयातुल्लाह ख़ामेनई कर भी रहे हैं |
आज हम समाज में लोगों से कैसे मिलें जुले , कैसे समाज को इंसनियत की नसीहत करें ज़ुल्म और न इंसाफ़ी से रोकें , कैसे अपनी दौलत को समाज की बेहतरी के लिए खर्च करें इन सबके अल्लाह के बताय उसूल है और हर इंसान का फ़रीक़ा है की इन कामो को अंजाम देते वक़्त अपनी मर्ज़ी या पसंद या ना पसंद को दरकिनार करते हुए अल्लाह उसके रसूल और अपने इमाम (ा.स) की मर्ज़ी के मुताबिक़ अंजाम दें जिसमे सबसे पहली हिदायत यह है की अल्लाह की मख्लूक़ के लिए दिलों में मुहब्बत होनी चाहिए उनकी मदद करने का जज़्बा होना चाहिए|
आज मज़हबी इदारे जिनके मक़ासिद बेहतरी हुआ करते हैं लेकिन अमली तौर पे कामयाबी के साथ उसे पूरा नहीं कर पाते और बहुत बार आपसी इख्तेलाफ़ात का शिकार हो जाते हैं जिसकी वजह सिर्फ एक होती है वे उस निज़ाम के तहत नहीं चलते जिसका हुक्म हज़रत अली (ा.स ) ने दिया था |
आज के दौर में हमारा फ़रीज़ा है की हम दीनी मामलात में उलेमा ऐ हक़ से मश्विरा करें मुजतहिदीन से पूछें और रहबर अयातुल्लाह ख़ामेनई के निज़ाम को समझें और उस से सीखने की कोशिश करें | इस काम की शुरुआत में सबसे पहले पढ़िए मौला अली का लिखा मालिक ऐ अश्तर को लिखा खत उस वक़्त जब उन्हें इजिप्ट का गवर्नर बना के भेजा था |
यक़ीन रखियेगा जब इस निज़ाम पे सब चलेंगे तो आपसी मतभेद , ज़ुल्म और जहालत का खात्मा दुनिया से हो जायगा और अम्न और अमां रहेगा |
एस एम मासूम
यही ऐलान ऐ ग़दीर का मक़सद था और मौला अली ने इसी सिस्टम के तहत लोगों को चलने की हिदायत दी जिसकी सबसे बेहतरीन मिसाल है उनका मालिक ऐ अश्तर को लिखा खत उस वक़्त जब उन्हें इजिप्ट का गवर्नर बना के भेजा |
इस पूरे खत का ज़िक्र तो अभी नहीं करूँगा लेकिन एक क़ौल काफी है की मौला अली ने कहा ऐ मालिक ऐ अश्तर तुम जहां के गवर्नर हो वहाँ जो भी लोग है उनके साथ सख्ती से पेश ना आना क्यों की वे या तो तुम्हारे धर्म भाई हैं या इंसानी रिश्ते से भाई हैं |
जब भी किसी इमाम को मौक़ा मिला उन्होंने इसी निज़ाम ऐ विलायत के ज़रिये समाज को दिशा निर्देश दिए और चलाने की कोशिश की | इस निज़ाम को चलाने के लिए समाज में राएज करने के लिए ज़्यादातर मामलों में किसी देश के क़ानून आड़े नहीं आते |
आज दौर हैं हमारे वक़्त ऐ इमाम की ग़ैबत का ऐसे में इस निज़ाम को समझाने की ज़िम्मेदारी हमारे मुजतहिद की है जिसे वे बखूबो अंजाम दे रहे हैं और अगर कहीं वे सत्ता में हैं तब तो उसी निज़ाम ऐ विलायत के तरीके से उन्हें अपनी ज़िम्मेदारियों को अंजाम देते रहना है जैसा की ईरान में अयातुल्लाह ख़ामेनई कर भी रहे हैं |
आज हम समाज में लोगों से कैसे मिलें जुले , कैसे समाज को इंसनियत की नसीहत करें ज़ुल्म और न इंसाफ़ी से रोकें , कैसे अपनी दौलत को समाज की बेहतरी के लिए खर्च करें इन सबके अल्लाह के बताय उसूल है और हर इंसान का फ़रीक़ा है की इन कामो को अंजाम देते वक़्त अपनी मर्ज़ी या पसंद या ना पसंद को दरकिनार करते हुए अल्लाह उसके रसूल और अपने इमाम (ा.स) की मर्ज़ी के मुताबिक़ अंजाम दें जिसमे सबसे पहली हिदायत यह है की अल्लाह की मख्लूक़ के लिए दिलों में मुहब्बत होनी चाहिए उनकी मदद करने का जज़्बा होना चाहिए|
आज मज़हबी इदारे जिनके मक़ासिद बेहतरी हुआ करते हैं लेकिन अमली तौर पे कामयाबी के साथ उसे पूरा नहीं कर पाते और बहुत बार आपसी इख्तेलाफ़ात का शिकार हो जाते हैं जिसकी वजह सिर्फ एक होती है वे उस निज़ाम के तहत नहीं चलते जिसका हुक्म हज़रत अली (ा.स ) ने दिया था |
आज के दौर में हमारा फ़रीज़ा है की हम दीनी मामलात में उलेमा ऐ हक़ से मश्विरा करें मुजतहिदीन से पूछें और रहबर अयातुल्लाह ख़ामेनई के निज़ाम को समझें और उस से सीखने की कोशिश करें | इस काम की शुरुआत में सबसे पहले पढ़िए मौला अली का लिखा मालिक ऐ अश्तर को लिखा खत उस वक़्त जब उन्हें इजिप्ट का गवर्नर बना के भेजा था |
यक़ीन रखियेगा जब इस निज़ाम पे सब चलेंगे तो आपसी मतभेद , ज़ुल्म और जहालत का खात्मा दुनिया से हो जायगा और अम्न और अमां रहेगा |
एस एम मासूम
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